आजकल इश्किया मिजाज़ लोगों के बीच एक ट्रेंड-सा चल पड़ा है जिसके कारण आयु आधारित संबोधनों पर तो विराम चिह्न लग ही गया है साथ ही हर उम्र का व्यक्ति चाहे महिला हो या पुरुष उन्हें #इश्ककेलिए_उपलब्ध नज़र आने लगा है।
खास तौर पर ऐसे लोगों का ध्यान लड़कियों से हटकर परिपक्व महिलाओं पर टिक गया है और इसको शान से बढ़ावा देने वाले लोग हैं वे नौसिखिए कवि, जिन्हें अपनी अभिव्यक्ति के लिए कोई अलग हटकर टॉपिक चाहिए।
मात्र इस वजह से वे अपनी बकवास पोस्ट के ज़रिए युवाओं की बुद्धि भ्रष्ट करने से भी नहीं चूक रहे हैं।
कोई चालीस पार की महिलाओं की सुंदरता पर सौंदर्य चालीसा लिखकर गुणगान कर रहा है तो कोई उनमें सर्वश्रेष्ठ प्रेमिका तलाश रहा है।
मेरा निवेदन मात्र इतना है कि यहाँ तो उन्हें बख्श दीजिए महोदय!
जो औरतें विवाहिता हैं,आप जितनी उम्र के तो जिनके बच्चे भी हों शायद! कुछ तो गरिमा का ध्यान कर लीजिए …
लोग इतने स्वार्थी और आलसी हो चुके हैं कि इन्हें इश्क में भी सहूलियत चाहिए क्योंकि हमउम्र लड़की के अल्हड़ नखरों की बजाय औरतों की समझदारी इन्हें इश्क के लिए आसान और उपयुक्त लगने लगी है ,फिर उम्र चाहे उसकी कुछ भी हो चलेगी !
इसके लिए ये फायदों की फेहरिस्त को कविता के रूप में पेशकर वाहवाही लेने में जुटे हैं!
सोचिए तो…
कितनी शर्मनाक स्थिति है
ये समाज की… ✍️
सत्य लिखा आपने।
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धन्यवाद!
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बहुत सही कहा आपने। लोगों के चित्त और चरित्र अब दुरुस्त नहीं रहे।
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