उम्र के मुकाम पर
हृदय की शिराओं का
ब्लॉक हो जाना
चाहे मुनासिब होगा •••
मगर वही सिस्टम तेरी
यादों पर आज़माएँ
तो अटैक आ जाना
क्या वाज़िब होगा •••
ज़खीरा यादों का
जमा होकर शिराओं में
हृदय के वॉल्व से भी
क्या मुख़ातिब होगा •••
इस रोग के चलते
मरम्मत हो गई दिल की
तब भी क्या धमनियों
में तू ही काबिज़ होगा •••
स्टेंट बेरुखी के अब
डल चुके शिराओं में
यादों का सिलसिला अब
तो हरगिज़ नहीं होगा•••✍️
#काव्याक्षरा
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