#मिजाज़

लिखना भी दिल्लगी है
गर एवज़ में ग़म रखो
क्यों न खुशदिली से
ज़िंदगी के मिजाज़ को लिखो…

कुछ खट्टे वाकये या
मीठी-सी चुभन
कुछ यादें कडवी-सी
या बुझाबुझा-सा मन…

न दिल में कश्मकश
की उलझनें रखो
मुसकराहट महँगी है
इसे होठों पर रखो…

kavyakshra

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