लिखना भी दिल्लगी है
गर एवज़ में ग़म रखो
क्यों न खुशदिली से
ज़िंदगी के मिजाज़ को लिखो…
कुछ खट्टे वाकये या
मीठी-सी चुभन
कुछ यादें कडवी-सी
या बुझाबुझा-सा मन…
न दिल में कश्मकश
की उलझनें रखो
मुसकराहट महँगी है
इसे होठों पर रखो…
सुन्दर प्रस्तुति |
LikeLiked by 1 person
आभार🎉🎉🎉
LikeLiked by 1 person