#जीवन_संशय

हम आस्था-अनास्था के
जाल में जकड़े हुए… !
विश्वास या अविश्वास की
एक डोर को पकडे़ हुए… !!
जीवन-मरण के चक्र में
हम लक्ष्य से भटके हुए… !
सत्य और असत्य के
संशय-भँवर में अटके हुए… !!

आशा और निराशा के
अंतर्द्वंद्व में झूलते… !
तृष्णा और वितृष्णा के
हर चक्र में हम घूमते… !!
एक मार्ग चुनकर संकटों को
पार भी कर लें अगर… !
उस लक्ष्य की ऊँचाई को भी
ज्ञात करना है मगर… !!

हम एक किरण की चाह में
जो राह को स्पष्ट करे… !
और एक निमिष की आस में
जो लालसा को नष्ट करे… !!
आध्यात्म की गहराई में
हम सत्यता को ढूँढते…!
नियति से अनजान बनकर
अहंकार में झूमते…!!

अब आत्मा की इस तरह
उलझन मिटानी चाहिए…!
एक लौ अलौकिक मन में
अपने, स्वयं जलानी चाहिए…!!
उस रोशनी में तुच्छता
का, नाश करना चाहिए…!
सोच को विराट, सच को
आत्मसात करना चाहिए…!!

#काव्याक्षरा
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